कोण्डागांव का वार्षिक फागुन मेला शुरु

कोंडागांव : प्राचीन काल से चली आ रहीकोण्डागांव कापारंपरिकफागुनमेला (मड़ई) 4 से 9 मार्च तक पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ आयोजित होगा। कोण्डागांव का पारंपरिक फाल्गुन वार्षिक मेला उत्सव आज से शुरू हो गया है, जो कि पूरे एक सप्ताह तक आयोजित रहेगा। प्रति वर्ष के भांति मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, मेला क्षेत्र में मीना बाजार,दुकानें, मनोरंजन की गतिविधियाँ और धार्मिक अनुष्ठान होंगे, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेंगे। मेला का आयोजन सन 1730 से प्रति वर्ष फागुन माह के मंगलवार दिन से प्रारंभ की जाती है मेला के एक दिन पूर्व रात्रि में प्रमुख मंदिर में निशा जातरा का आयोजन किया जाता है । जहां पर में बिना बाधा के मेला समपन्न होने के लिए देवी ,देवताओ का पूजा अर्चना कर अनुमति माँगा जाता है। अनुमति के पश्चात दूसरे दिन मेला का आयोजन होता है जहां पर ग्राम के देवी देवता सहित अंचल के सभी देवी देवता शामिल होकर सुख-समृद्धि के लिए मेला परिसर का परिक्रमा कर लोगों को आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा पिछले 300 वर्ष से चली आ रही है। मेला को लेकर प्रशासन ने तैयारी कर लिया है, सभी व्यापारियों को दुकान लगाने के लिए जगह चिन्हित कर आंबटन किया गया । मेले में प्राचीन रीति रिवाज के भव्यता के साथ मीना बाजार आकर्षण का केंद्र रहता है,जहां पर विभिन्न प्रकार नए पूराने खतरनाक झूले आदि स्थापित किये गए।

कोण्डागांव का वार्षिक फागुन मेला शुरु

कोंडागांव : प्राचीन काल से चली आ रहीकोण्डागांव कापारंपरिकफागुनमेला (मड़ई) 4 से 9 मार्च तक पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ आयोजित होगा। कोण्डागांव का पारंपरिक फाल्गुन वार्षिक मेला उत्सव आज से शुरू हो गया है, जो कि पूरे एक सप्ताह तक आयोजित रहेगा। प्रति वर्ष के भांति मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, मेला क्षेत्र में मीना बाजार,दुकानें, मनोरंजन की गतिविधियाँ और धार्मिक अनुष्ठान होंगे, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेंगे।

मेला का आयोजन सन 1730 से प्रति वर्ष फागुन माह के मंगलवार दिन से प्रारंभ की जाती है मेला के एक दिन पूर्व रात्रि में प्रमुख मंदिर में निशा जातरा का आयोजन किया जाता है । जहां पर में बिना बाधा के मेला समपन्न होने के लिए देवी ,देवताओ का पूजा अर्चना कर अनुमति माँगा जाता है। अनुमति के पश्चात दूसरे दिन मेला का आयोजन होता है

जहां पर ग्राम के देवी देवता सहित अंचल के सभी देवी देवता शामिल होकर सुख-समृद्धि के लिए मेला परिसर का परिक्रमा कर लोगों को आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा पिछले 300 वर्ष से चली आ रही है। मेला को लेकर प्रशासन ने तैयारी कर लिया है, सभी व्यापारियों को दुकान लगाने के लिए जगह चिन्हित कर आंबटन किया गया । मेले में प्राचीन रीति रिवाज के भव्यता के साथ मीना बाजार आकर्षण का केंद्र रहता है,जहां पर विभिन्न प्रकार नए पूराने खतरनाक झूले आदि स्थापित किये गए।