Entertainment News : आज फिल्म पाकिज़ा को 52 साल पूरे हुए, 1972 को बॉक्स ऑफिस पर दी थी दस्तक..
Entertainment News : आज पाकिज़ा फिल्म के 52 साल पूरे हुए। 04 फरवरी 1972 को इस शानदार फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर दस्तक दी थी। इस फिल्म के बारे में बहुत कुछ लिखा-कहा जा चुका है। तो वो सब बातें दोबारा आपको बताने से बेहतर है कि क्यों ना इस फिल्म से जुड़ी कुछ ऐसी कहानियां आपको बताई जाएं जो कम ही कही गई हैं।
Entertainment News : आज पाकिज़ा फिल्म के 52 साल पूरे हुए। 04 फरवरी 1972 को इस शानदार फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर दस्तक दी थी। इस फिल्म के बारे में बहुत कुछ लिखा-कहा जा चुका है। तो वो सब बातें दोबारा आपको बताने से बेहतर है कि क्यों ना इस फिल्म से जुड़ी कुछ ऐसी कहानियां आपको बताई जाएं जो कम ही कही गई हैं। तो चलिए, शुरू करते हैं। लेकिन इस शुरुआत से पहले आप सभी से एक गुज़ारिश। इस पोस्ट को लाइक व शेयर ज़रूर करिए। क्योंकि आपका लाइक व शेयर करना इस पेज की सफलता में आपका सपोर्ट बन सकता है। और आपका ये सपोर्ट मिलेगा तो दिल को बहुत खुशी मिलेगी। पहले भी कई दफा मिली है। पर खुशी तो जितनी मिल जाए थोड़ी है।
इस फिल्म के लिए कमाल अमरोही साहब ने बहुत मेहनत की थी। हर चीज़ पर बड़ी बारीकी से काम किया था। अमेरिका की नामी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी एमजीएम से कमाल अमरोही ने एक सिनेस्कॉप लैंस इस फिल्म की शूटिंग के लिए किराए पर लिया था। उस लैंस से कुछ शूटिंग करने के बाद कमाल अमरोही ने रील को ब्रिटेन की एक लैब में प्रोसेस्ड कराने भेजा। वहां से प्रोसेस्ड होकर जब वो रील कमाल अमरोही के पास वापस आई तो उन्होंने नोटिस किया कि रस्ड प्रिंट्स में पिक्चर पर एक फोकसिंग एरर आ रहा है। लेकिन ना तो वो एरर कैमरामैन पकड़ सका था। और ना ही वो एरर ब्रिटेन की उस लैब की पकड़ में आया जहां कमाल अमरोही ने वो रील प्रोसेस्ड कराने भेजी थी। कमाल अमरोही ने ये बात एमजीएम तक पहुंचाई तो एमजीएम ने कमाल अमरोही के इस दावे की जांच की। और जब एमजीएम ने जांच में पाया कि कमाल अमरोही सही कह रहे हैं तो उन्होंने कमाल अमरोही से लैंस का किराया ना लेने का फैसला किया। और तो औऱ, वो लैंस कमाल अमरोही को गिफ्ट भी कर दिया। ताकि कमाल अमरोही उस लैंस को ठीक कराकर आगे भी इस्तेमाल करते रहें।
अपने प्राण साहब भी गज़ब इंसान थे। गज़ब मतलब शानदार, हक की बात करने वाली शख्सियत। प्राण साहब को पाकिज़ा फिल्म बहुत पसंद आई थी। और उन्हें मलाल था इस बात का कि वो इस फिल्म का हिस्सा ना बन सके। प्राण साहब को पाकिज़ा का म्यूज़िक बहुत ज़्यादा भा गया था। साल 1972 में प्राण साहब की भी एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था बेईमान। वो फिल्म भी शानदार थी और उस फिल्म ने उस साल के फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में धूम मचा दी थी। प्राण साहब को उनके बेहतरीन काम के लिए फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवॉर्ड दिया गया था। लेकिन प्राण साहब ने वो अवॉर्ड स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। प्राण साहब ने कहा कि फिल्मफेयर वालों को बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर का अवॉर्ड पाकिज़ा के संगीतकार गुलाम मोहम्मद को देना चाहिए था।
ना कि शंकर-जयकिशन को जिन्होंने उनकी ही फिल्म बेईमान का संगीत दिया था। प्राण साहब के अवॉर्ड ना लेने के फैसले ने फिल्म इंडस्ट्री में सनसनी फैला दी थी। हालांकि प्राण साहब की काफी प्रशंसा भी हुई थी। वैसे, जिन गुलाम मोहम्मद साहब के लिए प्राण साहब बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर का अवॉर्ड मांग रहे थे वो साल 1968 में ही दुनिया छोड़ गए थे। यानि पाकिज़ा की रिलीज़ से काफी पहले ही। लेकिन प्राण साहब का कहना था कि अगर फिल्मफेयर एक बेहद प्रतिभावान संगीतकार को उसकी मौत के बाद सम्मान नहीं दे सकता तो उन्हें फिल्मफेयर का कोई अवॉर्ड नहीं चाहिए। वैसे, आपको बता दें कि गुलाम मोहम्मद की मौत के बाद संगीतकार नौशाद साहब ने पाकिज़ा का बाकि बचा हुआ काम पूरा किया था।
पाकिज़ा की शूटिंग पूरी होने से काफी पहले ही इसके सिनेमैटोग्राफर जोसेफ विर्शचिंग की भी मृत्यु हो गई थी। ये कमाल अमरोही के लिए दूसरा बड़ा झटका था। पहला झटका उन्हें संगीतकार गुलाम मोहम्मद की मौत से लगा था। हालांकि उस झटके से तो उन्हें नौशाद साहब ने उबार लिया था। लेकिन जोसेफ विर्शचिंग की मौत के बाद वो क्या करेंगे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था। नया सिनेमैटोग्राफर हायर करने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। जब ये बात सिनेमैटोग्राफर फ्रैटर्निटी तक पहुंची तो कई सिनेमैटोग्राफर्स कमाल अमरोही के सपोर्ट में आ गए। वो बारी-बारी से अपने फ्री टाइम में कमाल अमरोही के लिए पाकिज़ा की शूटिंग कराने आ जाते। और इस तरह कमाल अमरोही को एक बड़ी टेंशन से निजात मिल गई।
पाकिज़ा फिल्म को जो रुतबा हासिल हुआ उसमें संगीतकार गुलाम मोहम्मद के संगीत का बहुत बड़ा योगदान था। लेकिन जब गुलाम मोहम्मद की मृत्यु हो गई तो फिल्म के एक फाइनेंसर ने कमाल अमरोही को मशविरा दिया कि क्यों ना इस फिल्म का संगीत मौजूदा वक्त के हिसाब से तैयार कराया जाए। क्योंकि गुलाम मोहम्मद ने तो पाकिज़ा का संगीत सालों पहले ही तैयार कर दिया था। अगर मौजूदा दौर का म्यूज़िक जो कि चलन में भी है, उसे फिल्म में रखा जाए तो फिल्म को सफलता मिलने की गुंजाइश ज़्यादा हो जाएगी। ये बात सुनकर कमाल अमरोही ने उस फाइनेंसर से कहा,"मैं गुलाम मोहम्मद साहब से धोखा नहीं कर सकता।
उन्होंने बड़ी मेहनत से मुझे 12 गीत इस फिल्म के लिए तैयार करके दिए। अब मैं उनके संगीत को फिल्म से हटा दूंगा तो ये तो उनकी मेहनत के साथ नाईंसाफी होगी।" हालांकि कमाल अमरोही गुलाम मोहम्मद के सभी गीतों को फिल्म में नहीं रख सके। अगर वो फिल्म में उनके सभी गीतों को जगह देने का प्रयास करते तो फिल्म बहुत ज़्यादा लंबी हो जाती। पाकिज़ा में गुलाम मोहम्मद जी द्वारा कंपोज़ किए गए कुल छह गीत रखे गए थे। और फिल्म में कुल 11 गीत थे। यानि अन्य 05 गीत नौशाद साहब द्वारा कंपोज़ किए गए थे। गुलाम मोहम्मद के अन्य गीतों का कलैक्शन कमाल अमरोही साहब ने 'पाकिज़ा रंग बरंग' नाम से एक एल्बम के ज़रिए रिलीज़ किया था।
पाकिज़ा जितनी शानदार फिल्म है, उतनी शानदार इस फिल्म की मेकिंग की कहानियां भी हैं। सभी कहानियों को फिलहाल कह पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं। मैं प्रयास करूंगा कि वक्त-वक्त पर पाकिज़ा फिल्म की कहानियां लाता रहूं। फिलहाल पाकिज़ा की कहानियों का ये सिलसिला यहीं पर थामते हैं। आप लोग अपनी प्रतिक्रिया देनां भूलिएगा मत। धन्यवाद आपका अगर आप यहां तक ये पोस्ट पढ़ते हुए आ गए हैं तो। जय हिंद