History: टीपू सुल्तान ने दिलाया था दलित महिलाओं को स्तन ढंकने का अधिकार
History: आज के दिन यानी 26 जुलाई 1859 को त्रावणकोर रियासत में महिलाओं को अपनी छाती ढंकने का अधिकार दिये जाने का नया फुरमान जारी किया गया था। इससे पहले हरेक महिला को किसी भी ऊंची जाति के मर्द के सामने अपनी छाती को नंगा रखना होता था। अगर कोई महिला छाती ढंककर रखना चाहे तो उसे ब्रेस्ट टैक्स देना होता था। जिसे देना हर किसी के बस की बात नहीं थी। किसी महिला के स्तनों के आकार को देखकर टैक्स निर्धारित किया जाता था। सरकारी अधिकारी एक फीता लेकर महिला की छाती का नाप लेते थे और टैक्स लेते थे। जब नंगेली नामक एक अछूत समाज की महिला ने अपने स्तनों को ढंकना शुरू किया तो उससे टैक्स मांगा गया। टैक्स लेने के लिए घर पर आए अधिकारियों के सामने उसने अपने स्तनों को काटकर केले के पत्ते पर रखकर उनको सौंप दिया।
ज्यादा खून बहने से उनकी मौत हो गई। चारों तरफ त्रावणकोर रियासत की बुराई होने लगी तो राजा ने इस टैक्स को आज के दिन बंद करके हर महिला को छाती ढंकने के अधिकार का ऐलान कर दिया। इस रस्म के साथ ही मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की कहानी भी जुड़ी हुई है। वहां भी ऐसा ही रिवाज था। टीपू सुल्तान ने इसको बंद करके महिलाओं को छाती ढंकने का अधिकार दिया। जब उसे पता चला कि बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जिनके पास इतना कपड़ा पहनने के लिए भी पैसा नहीं है तो उसने अपने खजाने से उनको कपड़े सिलवाकर दिये। ब्राह्मण इससे नाराज हो गए। उन्हें लगता था कि एक गैर हिंदू हमारे धार्मिक रीति रिवाजों में दखलंदाजी कर रहा है। ब्राह्मणों ने विद्रोह किया तो टीपू सुल्तान ने उनको मारकर विद्रोह को शांत किया। इसी कारण आज तक ब्राह्मणों की टीपू सुल्तान से नाराजगी चली आ रही है। जो महिलाएं आज फैशन के लिए शरीर को ज्यादा से ज्यादा नंगा दिखाना चाहती हैं ये उनकी इच्छा है लेकिन उन्हें स्मरण होना चाहिए कि शरीर को ढंकने के अधिकार को लेकर एक महिला ने अपनी आहूति दी थी। तब जाकर ये अधिकार मिला था।
आज ही के दिन यानी 26 जुलाई 1902 को कोल्हापुर रियासत के महाराजा शाहूजी ने अपनी रियासत में दबे कुचले लोगों के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया था। इससे पहले जो भी सरकारी अधिकारी व कर्मचारी होते थे वे सब सवर्ण जाति खासकर ब्राह्मण होते थे। शाहूजी ने किसानों, दलित पिछड़े वर्गों एवं दूसरे लोगों जो किसी कारणवश पीछे रह गए थे उनके लिए आरक्षण का प्रावधान किया। इससे ब्राह्मण दुखी हो गए हालांकि उनकी आबादी के अनुसार अभी भी उनकी भागीदारी दूसरों से ज्यादा थी। शाहूजी को ढेढों का राजा का खिताब दिया गया। शाहूजी भारत में आरक्षण के जनक हैं। हम उनको शत शत नमन करते हैं।
दर्शन सिंह बाजवा