Article : गुरु नानक की शिक्षाओं की शक्ति

Article : “इक ओंकार” को सिख धर्म में मूल मंत्र माना जाता है। पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब के शुरुआती पन्ने पर “इक ओंकार” ही लिखा हुआ है।

Article : गुरु नानक की शिक्षाओं की शक्ति

Article : “इक ओंकार” को सिख धर्म में मूल मंत्र माना जाता है। पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब के शुरुआती पन्ने पर “इक ओंकार” ही लिखा हुआ है। यह पूरा मंत्र है “इक ओंकार, सत्नाम, करता पुरख, निरभौ, निर्वैर, अकाल मूरत, अजूनी सै भम, गुरु प्रसाद”। इस मूल मंत्र का मतलब है – “ईश्वर एक ही है, उसका नाम ही सत्य है, वही स्रष्टा है, वह निर्भय है, वह द्वेष रहित है, वह अमर है, वह जन्म-मरण से परे है, और केवल उसकी कृपा से ही उसके नाम का जाप किया जा सकता है”। गुरु नानक देव जी के उपदेश श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में लिखे हुए हैं।

श्री गुरु नानक देव जी का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, इनके पिता जी का नाम मेहता कालू जी और माता जी का नाम तृप्ति था। इनका विवाह मात्र 16 वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिला के लखौकी नामक जगह पर रहने वाली सुलक्खनी देवी से हुआ था। गुरु नानक देव जी के दो बेटे हुए, जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मी चंद था। अपने बेटों के जन्म के बाद गुरु नानक जी अपने साथियों के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े और चारों ओर घूम घूमकर उपदेश देने लगे। इस दौरान इन सब ने मिलकर भारत, अफगानिस्तान, पारस और अरब में उपदेश देने का काम किया।

पंजाबी में ही इन्हीं यात्राओं को “उदासियां” कहा जाता है। गुरु नानक देव जी ने हमेशा मूर्ति पूजा की भर्त्सना की है और रूढ़ियों के खिलाफ खड़े रहे हैं। उन्होंने हमेशा लोगों को यह कहा है कि ईश्वर कहीं बाहर नहीं, किसी मूर्ति में नहीं है बल्कि हमारे अंदर विराजमान है। उस समय इब्राहिम लोदी ने गुरु नानक देव जी को कैद कर लिया था और जब पानीपत की आखिरी लड़ाई हुई तो इब्राहिम के हारने के बाद बाबर का राज आ गया और तब गुरु नानक देव जी को कैद से रिहाई मिली। गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में एक शहर भी बसाया। गुरु नानक देव जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 को हो गई इसके बाद इन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इन्हें ही बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाना गया।

हम सब जानते हैं कि हम जितना बाटेंगे उतना ही दूसरों का ध्यान रख पाएंगे।  गुरु नानक देव जी ने भी यही बताया है कि हमें जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। गुरु नानक देव जी ने अपने पूरे जीवन दूसरों को यही सिखाया है और यही सिख धर्म का मूल भाव है। उन्होंने आम लोगों को यही शिक्षा दी है कि “ईश्वर की कृपा से हमें जो कुछ भी मिलता है, हमें उसे जरूरतमंदों के साथ बांटना चाहिए और उसके बाद खुद उपभोग करना चाहिए।”