तहरीक-ए-जंगे आज़ादी और साझी विरासत और हमारी ज़िम्मेदारियां

Article : भारत की आज़ादी साझी विरासत की नायाब मिसाल है। यह एक ऐसी विरासत है जिसकी रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। साझी विरासत न केवल भारत की साझी संस्कृति की वाहक है

तहरीक-ए-जंगे आज़ादी और साझी विरासत और हमारी ज़िम्मेदारियां

एम. डब्लू. अंसारी

Article : भारत की आज़ादी साझी विरासत की नायाब मिसाल है। यह एक ऐसी विरासत है जिसकी रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। साझी विरासत न केवल भारत की साझी संस्कृति की वाहक है बल्कि इसमें भारत की रूह बसती है।

भारत की महानता, मध्य प्रदेश की शान ओ शोकत और भोपाल के सौंदर्यीकरण में देश के सभी नागरिकों ने अपना खूने जिगर दिया है, लेकिन आज कुछ निहित स्वार्थों के कारण देश की महानता और साझी सभ्यता की छाप धूमिल होती जा रही है। ऐसे में न केवल साझी विरासत के उत्तराधिकारियों की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है, बल्कि देश को एक बार फिर उसी एकता और सर्वसम्मति को पेश करने की ज़रूरत आ पड़ी है जो उनकी  नायाब विरासत का हिस्सा है।

हम सभी जानते हैं कि भारत विभिन्न सभ्यताओं का गुलदस्ता है और अगर इस गुलदस्ते से अलग-अलग रंगो को निकाल कर केवल एक ही रंग के फूल लगाए जाएंगे तो इसकी सुंदरता फीकी पड़ जाएगी। मादरे वतन को तो जन्नत निशां कहा जाता है और जन्नत में कभी भी एकरंगा रंग नहीं हो सकता। किसी शायर ने क्या खूब कहा हैः

कोई चमन कहीं जन्नत निशां नही होता
अगर ज़मीं पर हिन्दोस्तां नही होता

जब देश की आज़ादी के साथ मातृभूमि की छाती पर विभाजन की इबारत लिखी गई तब भी भारत के अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों ने कड़ा रुख व्यक्त किया। जो लोग भावनाओं में बहकर पलायन कर गए, वे आज जब भारत की शांति-व्यवस्था को अफसोस भरी नज़रों से देखते हैं तो कहते हैं कि काश हमारे बुजुर्गों ने जल्दबाजी में यह लापरवाही न की होती। उस समय भी भारत से प्रेम करने वाला मुसलमान यही कहता था 

तुम जाओ कहीं भी हम इसी जन्नत में रहेंगे
भारत के हैं, भारत से हैं और भारत में रहेंगे

भारत की तरक्की का सपना हर भारतीय का है, लेकिन यह सपना ऐसे पूरा होने वाला नहीं है। इसके लिए हमें लोगों को जागृत करना होगा और नई पीढ़ी को वर्तमान युग की आवश्यकताओं से अवगत कराना होगा। नई पीढ़ी को पेश करने के पीछे का उद्देश्य हर देश के स्वतंत्रता सेनानियों की सेवाओं को उजागर करना है। अगर समय रहते यह काम नहीं किया गया तो जिस तरह से साझी विरासत के स्वतंत्रता सेनानियों का नाम भुला दिया गया और एक-एक कर यह सिलसिला लगातार जारी है। यह हम सभी के लिए चिंता का क्षण है।

जिसके कारण देश की आज़ादी के नायकों में कुछ ही नाम देखने को मिलते हैं और जिस देश के मुजाहिदीनों ने लाखों की संख्या में मातृभूमि के लिए अपना बलिदान दिया हो, उनके नाम बहुत ढूंढने के बाद ही कहीं नजर नही आते।

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गोर से देखें तो 1757 से 1947 तक कोई साल ऐसा नहीं है जब इस देश के मुजाहिदीनों ने अपना खून व जिगर मातृभूमि के लिए कुर्बान न किया हो। जब हम झाँसी की रानी के बारे में बात करते हैं, तो नवाब अली बहादुर फोजी, सरदार गुलाम गोस, दोस्त मोहम्मद खान, मुहम्मद ज़मां खान, खुदा बख्श, मुंज़र/मुंदर मुस्लिम लेडी बॉडी गार्ड आदि को भी याद किया जाना चाहिए।

जब बेगम हज़रत महल की कुर्बानियों का ज़िक्र होता है तो राजा बेनी प्रसाद, गुलाब सिंह, हनुमंत सिंह, राजा बलभद्र सिंह आदि और इसी तरह मजनू शाह फकीर के साथ भवानी पाठक, रानी चैधरी और को भी याद करना चाहिए। इसी तरह, जब हम गांधीजी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, अरुणा आसिफ अली, सुभाष चंद्र बोस, सरोजिनी नायडू, बाबा साहब अंबेडकर का नाम लेते हैं तो सिराजुद्दौला, टीपू सुल्तान, बहादुर शाह ज़फर, मौलाना आज़ाद, हसरत मोहानी, अशफाकउल्ला खां आदि का नाम भी हमारी जुबान पर होना चाहिए।

लेकिन बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि आज की पीढ़ी गांधी जी के क़ातिल का नाम तो जानती है लेकिन गांधीजी के मुहाफिज़्ा बख्तमियां अंसारी (बतख मियां  अंसारी) को नहीं जानतीं है। बख्तमियां अंसारी ने उनको तो बचा लिया लेकिन उनका यह बलिदान उस समय की सत्ताधारी ब्रिटिश सरकार को पसंद नहीं आया और न केवल उन्हें बल्कि उनके पूरे परिवार को कारावास की यातनाएँ सहनी पड़ीं। देश की आजादी के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा उनकी सेवाओं के लिए दान की गई भूमि आज तक उनके परिवार को नहीं मिली है।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर छात्रों के बीच पेंटिंग प्रतियोगिता आयोजित करने का उद्देश्य नई पीढ़ी को देश की आज़ादी के उज्ज्वल इतिहास से अवगत कराना है। इसे समझें और इसमें अपनी भूमिका प्रस्तुत करें। जिस देश और राष्ट्र के बच्चे और नई पीढ़ी जाग जाती है वही क्रांति का इतिहास लिखता है। उम्मीद यही है कि देश के युवा मुजाहिदीन आजादी के गौरवशाली इतिहास का अध्ययन करेंगे और उसकी रोशनी में साझी विरासत को मजबूत करेंगे। वे एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे जिसमें सभी देशों के लोगों को समान अधिकार प्राप्त होंगे और भारत अपनी बुद्धिमता से विश्व में नया इतिहास लिखेगा।