सर सय्यद अहमद खान की तालीमी तेहरीक को आगे बढ़ाना अलीगस की सब से बड़ी ज़िम्मेदारीः एम.डब्ल्यू.अंसारी-अलीग (पूर्व डीजी)

क़िस्त (1) विश्व में शिक्षा के नाम पर आन्दोलन तो कई प्रारम्भ हुए लेकिन सदी और उसके बाद के अहद तक प्रभावी रहे आंदोलन का नाम पढ़ने में कहीं नहीं मिलता है। इस दृष्टि से जब हम सर सय्यद अहमद खान के शिक्षा आंदोलन को देखते हैं तो हम उन्हें शिक्षा के एक उज्ज्वल प्रकाश स्तंभ के रूप में देखते हैं।

सर सय्यद अहमद खान की तालीमी तेहरीक को आगे बढ़ाना अलीगस की सब से बड़ी ज़िम्मेदारीः एम.डब्ल्यू.अंसारी-अलीग (पूर्व डीजी)

सर सय्यद की तालीमी तेहरीक की असरी मानवियतः

क़िस्त (1) विश्व में शिक्षा के नाम पर आन्दोलन तो कई प्रारम्भ हुए लेकिन सदी और उसके बाद के अहद तक प्रभावी रहे आंदोलन का नाम पढ़ने में कहीं नहीं मिलता है। इस दृष्टि से जब हम सर सय्यद अहमद खान के शिक्षा आंदोलन को देखते हैं तो हम उन्हें शिक्षा के एक उज्ज्वल प्रकाश स्तंभ के रूप में देखते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक और एशियाई देशों में आधुनिक शिक्षा की अलख जगाने वाले सर सय्यद अहमद खान ने भारतीयों की शैक्षिक उन्नति के लिए एक सदी पहले जो शिक्षा की रूपरेखा तैयार की थी इसका महत्व न केवल कायम है बल्कि समय के साथ इसकी उपयोगिता बढ़ती जा रही है।

सर सय्यद अहमद खान ने 1857 में ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों और भारतीयों के विनाश को देखते हुए आधुनिक शिक्षा की रूपरेखा तैयार की थी और देखने वाले यही समझ रहे थें कि सर सय्यद ने भारतीयों और मुसलमानों की तात्कालिन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक शैक्षिक खाका विकसित किया है। लेकिन सर सय्यद की आंखों ने इस तालीमी तेहरीक में सदियों के तालीमी सफर का जो सपना देखा था दुनिया के लोग वहां तक नहीं पहुंच सके और जब माहिरिने तालीम सर सय्यद के शैक्षणिक विचारों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखते हैं तो उन्हें आश्चर्य होता है। सर सय्यद द्वारा स्थापित शैक्षिक विचारधारा पर चलते हुए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने न केवल लगभग डेढ़ शताब्दी सफलतापूर्वक पूरी की है बल्कि, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता की गूंज भारत और उसके बाहर भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनी हुई है। अब जबकि अक्टूबर महीने में अलीग बिरादरी द्वारा सर सय्यद के बताए हुए सबक़ को फिर से याद किया जा रहा है तो ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि सर सय्यद की तालीमी तहरीक, एजुकेशनल कांफ्रेंस को फिर से मुतहर्रिक किया जाए और हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था को समय की नई आवश्यकताओं के साथ जोड़कर काम करना चाहिए ताकि ये सदी और आने वाली सदी हम भारतीयों की सदी हो।

वर्तमान युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। अब पारंपरिक शिक्षा के ताने-बाने को आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकृत करने का समय आ गया है। ऐसे में सर सय्यद की शिक्षाएं हमारे लिए हर कदम पर मार्गदर्शक हैं। जिस तरह सर सय्यद अहमद खान ने अपने सहयोगियों के साथ पूरे भारत में भारतीयों और मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक शैक्षिक सम्मेलन का आयोजन किया था उसी राह पर चलते हुए सर सय्यद के शैक्षिक आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए लगातार शैक्षिक सम्मेलन आयोजित करने की आवश्यकता है और यह कार्य कठिन भी नहीं है। क्योंकि भारत का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट न हों।

एएमयू ओल्ड ब्वायज़ एसोसिएशन के सदस्य इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं। गांव गांव, शहर शहर शैक्षिक सम्मेलन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संचालित कर न केवल मुसलमानों को शिक्षा की समसामयिक आवश्यकता से अवगत कराने की जरूरत है बल्कि कौम के सहयोग से ऐसे संस्थान स्थापित करने की आवश्यकता है जहां धार्मिक अध्ययन के साथ समसामयिक अध्ययन का सुंदर संयोजन हो। ऐसे शिक्षण संस्थान जिनके छात्रों के एक हाथ में कुरान, दूसरे हाथ में वैज्ञानिक ज्ञान और सिर पर कलिमा तय्यबा का ताज हो। इस काम में मस्जिदों से बड़ी मदद ली जा सकती है।

आइए इस सर सय्यद डै पर हम मोहसिने कौम सर सय्यद अहमद खान को 
दिल की गहराइयों से खिराजे अकीदत पेश करें और सर सय्यद के शैक्षिक मिशन को पूरा करने के लिए वो कदम उठाएं जिस से मिशन की ज़रूरत भी पुरी हो और विश्व में भारतीय मुसलमानों का नाम रोशन हा और हम सभी सही और सच्चे अर्थों में मातृभूमि की सेवा कर सकेंगे।
जारी है ...