कांग्रेस टिकट वितरण में अल्पसंख्यक हाशिए पर, क्या ऐसे पूरा होगा कांग्रेस की जीत का सपना?:  एम.डब्ल्यू. अंसारी

मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है और सभी पार्टियों की ओर से टिकट वितरण का काम भी पूरा हो चुका है। इससे पहले कांग्रेस ने कर्नाटक में चुनाव जीता था और इससे कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है। कांग्रेस का मानना है कि वह अगले पांच राज्यों में भी चुनाव जीतेगी। 

कांग्रेस टिकट वितरण में अल्पसंख्यक हाशिए पर, क्या ऐसे पूरा होगा कांग्रेस की जीत का सपना?:  एम.डब्ल्यू. अंसारी

मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है और सभी पार्टियों की ओर से टिकट वितरण का काम भी पूरा हो चुका है। इससे पहले कांग्रेस ने कर्नाटक में चुनाव जीता था और इससे कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है। कांग्रेस का मानना है कि वह अगले पांच राज्यों में भी चुनाव जीतेगी। 

भले ही आज सब कुछ कांग्रेस के पक्ष में है, लेकिन कांग्रेस मनुवादी और पुंजीवादी  तत्वों की कटपुतली बनकर रह गई है। लोग बदलाव चाहते हैं। आम आदमी जाग चुका है। नौकरी चाहता है। महंगाई से मुक्ति और भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं। लोगों में सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना का विकास हुआ है। ऐसे में हर कोई कांग्रेस की ओर आशा भरी नज़रों से देख रहा है।

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इन सबके बावजूद कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती जनसंख्या के अनुपात में टिकट न बांटना है। एससी/एसटी तो आरक्षण के तहत टिकट पा लेते हैं। लेकिन कांग्रेस ने परिवार परंपरा को जारी रखा है। अल्पसंख्यक सबसे अधिक पीड़ित हैं, उसके बाद ओबीसी/बहुजन हैं जिनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया गया है।

कांग्रेस की ओर से जारी सूची में ठाकुर, ब्राह्मण और बनिया समाज को टिकट मिले है। जिनकी आबादी अल्पसंख्यक और ओबीसी/बहुजन से बहुत कम है, इससे साफ पता चलता है कि कांग्रेस आज भी जातिवाद, मनुवाद में विश्वास करती है और खुलेआम ऐसी मानसिकता को बढ़ावा देती है। वरना क्या कारण है कि आबादी के हिसाब से टिकट नहीं बांटे जाते? ज्यादातर टिकट उन लोगों को दिए जाते हैं जिनकी आबादी बहुत कम है. चाहे वे ठाकुर हों, ब्राह्मण हों या अन्य हों।

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यह भी स्पष्ट है कि आज तक जब भी कांग्रेस की सरकार बनी है तो केवल ब्राह्मण या ठाकुर ही मुख्यमंत्री बने हैं, हालांकि चुनावों में और कांग्रेस की जीत में अल्पसंख्यकों, एससी/एसटी और ओबीसी की प्रमुख भूमिका होती है। इसलिए इस बार यह बात भी उठ रही है कि कांग्रेस की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री ओबीसी या एससी/एसटी से होना चाहिए। गौरतलब है कि एससी और एसटी सीटों की कुल संख्या 82 है तो फिर आज तक ओ बी सी या फिर एसटी का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना?

यह भी गौरतलब है कि कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को उनकी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व देने की बात कही थी। कांग्रेस ने कहा था कि हम जनसंख्या के हिसाब से सभी को बराबर प्रतिनिधित्व देंगे. लेकिन कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों से वादाखिलाफी की है। जिससे अल्पसंख्यकों और पिछड़े समुदायों में गहरी नाराजगी है। खासकर मध्य प्रदेश में सिर्फ दो टिकट दिए गए हैं और दिए भी इसलिए गए है कि जीते या हारे कोई फर्क नहीं पड़ता। आबादी के अनुपात में अल्पसंख्यकों को कम से कम 25 टिकट मिलना चाहिए था, जो कांग्रेस ने नहीं दिया। मध्य प्रदेश में 35-40 ऐसी सीटें हैं जहां सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवार होने चाहिए। ऐसी स्थिति में यदि आप अल्पसंख्यक करे तो क्या करे? पार्टी लाइन पर वोट न देकर उम्मीदवार का चेहरा देखकर वोट करें। सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता प्रदर्शित करे?

छत्तीसगढ़ में भी कमोबेश यही स्थिति है। जहां 90 सीटों में से सिर्फ एक टिकट दिया गया है जबकि कम से कम 5 से 6 टिकट दिए जाने चाहिए थे। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का व्यवहार बेहद निराशाजनक रहा है. आज तक वहां न तो ख्वाजा गरीब नवाज़ यूनिवर्सिटी बनी और न ही हज हाउस। अन्य समस्याओं के बारे में क्या कहना? 
 
ऐसी ही स्थिति राजस्थान में भी है. वहां भी मुसलमानों को आबादी के अनुपात में टिकट नहीं दिया गया है और न ही पिछले पांच वर्षों में उन्हें कोई ठोस लाभ मिला है।

अब क्योंकि जनता जाग चुकी है. राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना आ गई है। इसलिए कहा जा सकता है कि इन सबका खामियाजा कांग्रेस को मौजूदा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। अब अल्पसंख्यकों को भाजपा का डर नहीं दिखाया जा सकता और न ही अल्पसंख्यक अब धर्मनिरपेक्षता का बोझ उठाने को तैयार हैं। भारत की धर्मनिरपेक्षता को बचाने की ज़िम्मेदारी सदैव भारतीयों की है, केवल मुसलमानों की नहीं। जब तक भारत में मनुवाद और पुंजवाद रहेगा, तब तक भारत में किसी का भला नहीं होने वाला।

यहां सवाल यह भी उठता है कि कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ/अल्पसंख्यक विभाग और उससे जुड़े अल्पसंख्यक नेताओं ने कांग्रेस में रहते हुए यह मांग क्यों नहीं की कि आबादी के अनुपात में अल्पसंख्यकों को टिकट दिया जाए। उन्होंने आवाज क्यों नहीं उठाई? क्या ये सभी अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि हैं या नहीं? या फिर कांग्रेस के सिर्फ प्रचार का जरिया है? और अल्पसंख्यक सेल में बैठकर दरबारी, चमचागिरी या भाँट की भूमिका निभा रहे हैं।

इस टिकट बंटवारे के अलावा कांग्रेस के एजेंडे में अल्पसंख्यकों के लिए कुछ खास नहीं है, इसलिए कांग्रेस को सावधान रहना चाहिए और ज्यादा लापरवाह नहीं होना चाहिए क्योंकि अल्पसंख्यक और पिछड़े के साथ-साथ ओबीसी और दलित समुदाय भी कांग्रेस से नाराज हैं। यह भी तय है कि किसी भी चुनाव में पार्टियों की हार-जीत अल्पसंख्यकों, पिछड़ों और दलितों से ही तय होती है। ज़रूरी है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यह समझे कि अल्पसंख्यक और पिछड़ा समुदाय ही उनकी असली जड़ है और उन्हें कम से कम आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व मिलना ही चाहिए। ज़रूरत है इस वर्ग से किये गये वादों को पूरा करने की। कांग्रेस को यह भी घोषणा करनी चाहिए कि कांग्रेस की सरकार बनते ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जाती जनगणना (जनगणना) करायी जायेगी, पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू की जाएगी, भविष्य में चुनाव ई.वी.एम. से नहीं होंगे। किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) दिया जाएगा। कांग्रेस मनुवादी-पुंजीवादी तत्वों को अपनी पार्टी से बाहर निकालेगी और भविष्य में ऐसी मानसिकता वाले लोगों को कांग्रेस में शामिल नहीं होने देगी। एससी, एसटी और ओबीसी यानी बहुजन समाज के साथ न्याय होगा. सभी बहुजन समाज को जनसंख्या के आधार पर भागीदारी दी जायेगी। इसके अलावा गरीब, मेहनतकश बहुजन समाज के लिए कांग्रेस के पास क्या कार्ययोजना है, उसे भी सार्वजनिक करना चाहिए। अगर कोई स्पष्ट एजेंडा नहीं है तो तुरंत एजेंडा बनाएं और उसकी घोषणा करें।