China to its knees : चीन ने 14 साल बाद अपनी आर्थिक नीति में ढील दी है. डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और भारत से प्रतिस्पर्धा के बीच, चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए ‘मध्यम रूप से ढीली’ (Moderately Loose) मौद्रिक नीति अपनाई है. इसका उद्देश्य खपत बढ़ाना, निवेश आकर्षित करना और व्यापार को गति देना है.
चीन ने 14 साल बाद पहली बार अपनी पॉलिसी के रुख में बदलाव किया है. वैश्विक बाजारों के लिए यह बहुत बड़ी खबर है. 2025 में अपनी अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने के लिए चीन ने ‘मध्यम रूप से ढीली’ (Moderately Loose) पॉलिसी अपनाने का निर्णय लिया है. इस बदलाव का उद्देश्य व्यापारिक तनावों और संभावित चुनौतियों का सामना करना है, खासकर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की संभावित वापसी के मद्देनजर. इसके अलावा मैन्युफैक्चरिंग के मामले में भारत के साथ कंपीटिशन को भी एक वजह माना जा रहा है.
पोलित ब्यूरो ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य रियल एस्टेट और इक्विटी बाजारों में स्थिरता लाना है. इसके अलावा, अप्रत्याशित चक्रीय समायोजन (Unconventional counter-cyclical) को मजबूत करना भी इसका मुख्य उद्देश्य है. पहले, चीन की मौद्रिक नीति को ‘सावधान’ (Prudent) रुख के साथ संचालित किया जा रहा था. पोलित ब्यूरो ने यह भी जोर दिया कि नीति निर्माण में ‘सभी उपकरणों’ का बेहतर उपयोग करना होगा. इसमें घरेलू मांग को बढ़ाना, विदेशी निवेश को स्थिर रखना और विदेशी व्यापार में सुधार लाना शामिल है.
क्यों लिया गया यह फैसला?
पिछली बार चीन ने 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी के बाद ‘मध्यम रूप से नरम’ मौद्रिक नीति अपनाई थी. मौजूदा निर्णय अमेरिकी ट्रेड वॉर और घरेलू बाजार की चुनौतियों के मद्देनजर लिया गया है. इसके अलावा, डोनाल्ड ट्रंप के अगले महीने राष्ट्रपति पद पर लौटने की तैयारी और उनके द्वारा चीनी निर्यात पर नए टैरिफ की धमकी भी इस फैसले का कारण हो सकती है.
पोलित ब्यूरो ने कहा कि यह जरूरी है कि घरेलू खपत को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं. “हमें खपत को बढ़ावा देने, निवेश की दक्षता में सुधार करने और सभी दिशाओं में घरेलू मांग को विस्तार देने की आवश्यकता है,” पोलित ब्यूरो ने कहा.
इस नीति बदलाव से चीन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने बाजार को वैश्विक निवेश के लिए और अधिक आकर्षक बनाना चाहता है. विदेशी व्यापार को स्थिर रखने के साथ-साथ विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की बात भी इस नीति में शामिल है. इस घोषणा के बाद चीन का CSI 300 सूचकांक 0.17% की मामूली गिरावट के साथ बंद हुआ. हालांकि, इस निर्णय का वैश्विक कमोडिटी बाजारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखना अभी बाकी है.
पोलित ब्यूरो ने आर्थिक नीतियों के साथ-साथ भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने और पारदर्शिता बढ़ाने पर भी जोर दिया. बयान में कहा गया, “हमें भ्रष्टाचार और अस्वस्थ प्रथाओं की जांच और समाधान के लिए तंत्र में सुधार करना होगा.”
वैश्विक निवेशकों को अच्छा संकेत देने का प्रयास
इस नई घोषणा से चीन की आर्थिक प्राथमिकताओं और वैश्विक निवेशकों के लिए एक सकारात्मक संकेत मिलता है. चीन ने जो नई पॉलिसी की घोषणा की है, उसका अर्थ है कि केंद्रीय बैंक वित्तीय बाजारों में अधिक लिक्विडिटी (liquidity) उपलब्ध कराएगा.
अधिक लिक्विडिटी का लाभ कई तरीकों से मिल सकता है. इस कदम से चीन चाहता है कि उसके देश में लोन और निवेश को प्रोत्साहन मिले, घरेलू मांग बढ़े और व्यापारिक विकास को गति मिले.
चीन की आर्थिक वृद्धि हाल के वर्षों में धीमी हुई है. इस नई नीति से विकास को गति देने की कोशिश की जा रही है. यह नई पॉलिसी निवेशकों को संकेत है कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है.
भारत पर क्या होगा इसका असर
भारत और चीन के बीच निर्यात और निवेश को लेकर पहले से ही प्रतिस्पर्धा है. भारत चीन से कारोबार छीनकर यहां लाने की कोशिशों में जुटा है. ऐपल और फॉक्सकॉन जैसी कुछ कंपनियों ने चीन किनारा करते हुए भारत का रुख किया है. ऐसे में चीन की नई नीति इसे इस कंपीटिशन को और बढ़ा सकती है. चीन की नई पॉलिसी का असर उसकी प्रोडक्टिविटी और कीमतों पर पड़ेगा, जिससे भारत को भी अपनी बिजनेस स्ट्रैटेजी बदलनी पड़ सकती है. यदि निवेशक चीन में मिलने वाले अवसरों को विशेष ध्यान देते हैं तो भारत को अपनी नीतियों को बदलकर और आकर्षक बनाने की जरूरत पड़ेगी.
चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ (Xinhua) ने रिपोर्ट किया कि देश 2025 में अपने उधार और राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) को बढ़ाने की योजना बना रहा है. यह घोषणा संकेत देती है कि चीन बड़े निवेशों के लिए तैयार है.(एजेंसी)