मुसलमानों के अंबेडकर अली हुसैन आसिम बिहारी का यौमे वफात

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मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी की कुर्बानियों से नयी नस्ल को

परिचित कराना हमारी जिम्मेदारी है: एम. डब्ल्यू. अंसारी (आई.पी.एस)

Article : मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी का जन्म बिहार के एक गरीब पिछड़े बुनकर परिवार में हुआ था। प्रारंभ में, उन्होंने कलकत्ता में ओशा संगठन में अपना करियर शुरू किया। अपने रोजगार के दौरान उन्होंने अध्ययन और पढ़ने में रुचि दिखाई। वे विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय थे । सरकारी प्रतिबंधों के कारण उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपनी आजीविका के लिए बीड़ी बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने राष्ट्र और समाज से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने बीड़ी मजदूर साथियों की एक टीम बनाई |

Maulana Ali Hussain 'Aasim Bihari' | Maulana Ali Hussain is the father of  the first Pasmanda Movement. He created the organisation "Jamiatul Mominin"  (Party of the Righteous) in 1920. He... | By NewsDrum | Facebook

मौलाना आसिम बिहारी ने शुरू से ही गरीब और पिछड़ी जातियों को लामबंद, सक्रिय और संगठित करने की कोशिश की। इसके लिए वे हर सम्मेलन में अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों, नेताओं और संगठनों को शामिल करते थे, उनके योगदान को मोमिन गजट में भी बराबर का स्थान दिया जाता था।

मौलाना ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1940 में उन्होंने देश के बंटवारे के खिलाफ दिल्ली में धरना दिया जिसमें करीब चालीस हजार पिछड़े वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया। उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने पर जोर दिया, उन्होंने कहा कि पेट में दाना न हो, पैरों में जूते न हों, लेकिन जेब में कलम और हाथ में कागज़ होना बहुत ज़रूरी है। भूखा रहिये पर शिक्षा ज़रूर प्राप्त करिये क्योंकि वे जानते थे कि समाज में फैली जातिवाद, छुआछूत और अन्याय की इस गंदी परम्परा को यदि समाप्त करना है तो उच्च शिक्षा प्राप्त करनी होगी। यदि हम समाज में व्याप्त सभी प्रकार की बुराइयों को मिटाना चाहते हैं तो हमें शिक्षित बनना होगा ।

उन्होंने मुसलमानों के बीच जाति को खत्म करने के लिए भी जो कि इस्लाम में सख्त वर्जित है कड़ी मेहनत की, इसलिए, उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों के कल्याण, शिक्षा और आर्थिक रूप से उपेक्षित और कमजोर दलित समुदायों के प्रयासों में लगा दिया। लेकिन अफसोस की बात है कि इतने अज़ीम रेहनुमा और मुजाहिदे आज़ादी, बाबा ए कौम अली हुसैन आसिम बिहारी को याद करने वाला कोई नहीं है । उनके जीवन का मिशन और उद्देश्य एक ही था कि कैसे समाज के सबसे निचले तबके का सामाजिक और शैक्षणिक रूप से उत्थान किया जाए और कैसे उन्हें उनका जायज अधिकार दिलाने के लिए समर्पित किया जाए।

इसी तरह तमाम पिछड़े नेता चाहे अब्दुल कय्यूम अंसारी हों, शेख भीकारी हों, बतख मियां अंसारी हों, उनके जैसे हज़ारों पिछड़े नेता हैं, जिन्हें पूछने वाला कोई नहीं है, जरूरत इस बात की है कि इन महान विभूतियों ने जिस सोच को आगे बढ़ाया है. इसी सोच और विचार को ध्यान में रखते हुए हमें इस युग में भी उनके मिशन को आगे बढ़ाते हुए अपने राष्ट्र को शिक्षित करने, एक करने की जरूरत है और अपने हक के लिए लड़ने की जरूरत है।

मौलाना अली हुसैन बिहारी डॉ. अंबेडकर के हमअस्र हैं और मुसलमानों के अंबेडकर भी कहलाते हैं आज उनके यौमे वफ़ात पर हमें संविधान को बचाने का संकल्प लेना होगा। आज इस मौके पर मुल्क के गोशे गौशे से ये आवाज़ भी उठ रही है कि अगर बाबा साहब के संविधान को बचाना है तो ईवीएम को हटाना होगा। भारत लोकतांत्रिक है और इसे लोकतांत्रिक रहना चाहिए इसके लिए 1950 के राष्ट्रपति आदेश को हटाना होगा, जिसने एक निश्चित वर्ग को वंचित किया है। धारा 341 ( 1 ) को हटाना होगा । संविधान की प्रस्तावना की रक्षा करनी होगी।

प्रत्येक प्रांत में सर्वत्र व्यक्तिगत जनगणना होना चाहिए । मकसद ये है कि मनुवाद और पुंजीवाद को खत्म किया जाए, यही बाबा ए कौम अली हुसैन आसिम बिहारी और उनके जैसे तमाम नेताओं का मिशन था। साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात जो उन्होनो कही थी, “भले ही पेट में दाना न हो, पैर में जूता न हो, लेकिन आपकी जेब में कलम और हाथ में कागज़ होना बहुत जरूरी है”। अगर हम सब आज इस मिशन को आगे बढ़ाएंगे तो यह अली हुसैन आसिम बिहारी और बाबा साहेब अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

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Author: Khulasa Post

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