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लेख : एम.एच. जकरीया
आज ये समस्या केवल भारत की ही नही बल्के पूरे विश्व की बनती जा रही हैं - अब जहाँ देखो वहां सिर्फ धर्म के नाम पर ही इंसान इंसान को मारे जा रहा है ,चाहे फ्रांस हो या जर्मनी या अमेरिका का रंग भेद या इस्लाम के नाम पर मार काट हो, चाहे पाकिस्तान में शिया समुदाय का सुन्नी मुसलमानों के साथ लड़ाई हो या अफगानिस्तान में धार्मिक कट्टरता के नाम पर तालिबानों का जुल्म हो।
इतिहास बताता है की कैसे सत्ता पाने के शासक वर्ग अधिक से अधिक सत्ता अपने हाथों में केंद्रित करने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया करते थे. इसमें कोई आश्चर्य नहीं, कि राजाओं ने अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं को धार्मिक आधार पर औचित्यपूर्ण ठहराना शुरू कर दिया था अगर कोई ईसाई राजा अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था तो उसके लिए किए जाने वाले युद्ध को वह ‘क्रूसेड’ बताता था. इसी तरह, मुस्लिम राजा कभी युद्ध नहीं करते थे, वे हमेशा जिहाद करते थे. हिंदू राजाओं की हर लड़ाई धर्मयुद्ध हुआ करती थी. और धीरे धीरे यही धर्मयुध्द ने साम्प्रदायिकता का ज़ामा पहन लिया
समय के साथ-साथ पूरी दुनिया में सांप्रदायिक हिंसा ने भयावह रूप धारण कर लिया है. भारत में वह हिंदू धर्म का चोला ओढ़े है तो बांग्लादेश और पाकिस्तान में इस्लाम का. श्रीलंका और म्यांमार में वह बौद्ध धर्म के वेश में है. इज़राइल और फलस्तीन में यहूदी और मुस्लमान का इंग्लैंड और अमेरिका में काले और गोरो पर इस हिंसा इनसभी का मात्र एक लक्ष्य और एजेंडा है किसी तरीके से भी सत्ता को पाना धर्म के बारे में सामान्य रूप से कहा जाता है कि यह जीवन जीने का रास्ता बताता है। सभी धर्मों में इसी बात को लेकर अलग-अलग व्याख्या है।
मैं विभिन्न धर्मों व पंथों के बारे में व उनके मतों के बारे में गहराई में नहीं कहना चाहता। पर मेरा मानना है कि धर्म के नाम पर राजनीती और गुमराह करना अब खतरनाक रूप लेता जा रहा है , अभी-अभी की कुछ घटनाओं को समझें तो आप खुद ही बेहतर समझ जायेंगे कुछ चालक किस्म के लोग हम सब को धर्म के नाम पर गुमराह करने में लगे है |
धर्म केवल नियम कानूनों में बँधना नहीं बल्कि धर्म इंसान को एक-दूसरे इंसान के साथ इंसानियत का भाव बनाए रखने में मदद करता है। आज के परिप्रेक्ष्य में यही जरूरी है। हम न केवल धर्म को बल्कि साधारण सी समस्याओं का भी राजनीतिकरण करने से नहीं चूकते। लगभग सभी धर्म, अपने-अपने संदर्भों में, मानवतावाद की बात करते हैं परंतु न जाने क्यों, धर्मों के दार्शनिक पक्ष की बजाए उनके रीतिरिवाज, सामुदायिक कार्यक्रम और पुरोहित–मौलवी उनकी पहचान बन गए है और अब तो फ़रमान – और फतवों ने धर्म का आड़ लेकर इन्सान को इन्सान से जुदा करने में लगा है !
धर्म के नाम पर हिंसा के संदर्भ में इस्लाम को सबसे ज्यादा बदनाम किया गया है. जहां खोमैनी के बाद इस्लाम को दुनिया के लिए नया खतरा बताया गया, वहीं 9/11 के बाद खुलकर, इस्लामिक आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल होने लगा. समय के साथ अलकायदा उभरा जो मध्य व पश्चिम एशिया में आतंकवादी हिंसा की अधिकतर वारदातों के पीछे था.
बोको हराम, आईसिस और अलकायदा की तिकड़ी, इस्लामिक पहचान को केंद्र में रखकर वीभत्स हिंसा कर रही है.
यह प्रक्रिया शुरू हुई थी अफगानिस्तान में सोवियत सैनिकों को काफिर बताकर उन पर हमला करने के आह्वान से. अब हालत यह है कि मुसलमानों का एक पंथ ही दूसरे पंथ के सदस्यों को काफिर बता रहा है और अत्यंत क्रूर व दिल दहलाने वाले तरीकों से लोगों की जान ली जा रही है. इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तिकड़ी द्वारा जिन लोगों की जान ली गई है, उनमें से सबसे ज्यादा मुसलमान ही मारे गए अन्य कोई और नहीं !
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