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अज़ान लाउड स्पीकर पर होनी चाहिए या नहीं ?
एम् एच जकारिया
अज़ान लाउड स्पीकर पर होनी चाहिए या नहीं, इसको लेकर इन दिनों चर्चा गर्म है। सौहार्द बिगाड़ने वाले लगातार देश का वातावरण खराब करके मानवता को बाँटने मे लगे हुए है ! क्योकि इनके पास सिवाय नफरत के , देने के लिए कुछ भी बचा नही है।
आज से 1400 साल पहले से अज़ान बोला जाता रहा है और ईश्वर की आराधना के लिए आवाज़ दिया जाना ही अज़ान कहलाता है
इस्लाम धर्म में हर मुस्लमान पर पांच इबादत फ़र्ज़ हैं जिन्हे पूरा करना हर मुस्लमान पर जरुरी हैं यानि फ़र्ज़ हैं। इन्ही पांच फ़र्ज़ में से एक फ़र्ज़ नमाज़ हैं नमाज़ दिन में पांच वक़्त पढ़ी जाती हैं ,
अज़ान (उर्दू: أَذَان) या अदान। इस्लाम में मुस्लिम समुदाय अपने दिन भर की पांचों नमाज़ों के बुलाने के लिए ऊँचे स्वर में जो शब्द कहते हैं, उसे अज़ान कह कर लोगों को [मस्ज़िद] की तरफ़ बुलाने को कहा जाता है, रमज़ान मे जब रोजे की हालत मे भूख की तड़फ और प्यास की शिदत से जब सूरज डूबता है तो अज़ान की आवाज़ पर ही रोजेदार अपना रोजा पुरा करता है , फ़िर इसमें किसी को क्या और कैसे तकलीफ हो सकती है भला
लेकिन अफसोस है की अज़ान को भी अब राजनीतिक आईने से देखा जा रहा है !
इसे जान बूझकर राजनितिक इशू बनाया जा रहा है, हर दौर में समाज में नफरत फैलाने वाले होते रहे है जो धर्म को मुद्दा बनकर सत्ता पाना चाहते है ये अभी भी है और उस दौर में भी था तब भी कुछ विद्द्न संतोषी लोग अज़ान पर उंगली उठाने का काम करते रहे थे और अभी वर्तमान में भी है, लेकिन समय के हिसाब से उन्हे इसका माकूल जवाब भी मिलता रहा है! सदियों से ये क्रम निरन्तर जारी है और अंत तक जारी रहेगा रुकेगा नही।
अज़ान पर विवाद आज कोई नया नही है, ये विवाद हमेशा से खड़ा किया जाता रहा है, इस्लाम और मुसलमानो पर जुल्म तो हमेशा से होता रहा है, लेकिन इसे कभी दबाया नही जा सका ! इतिहास गवाह है इसे जितना दबाया गया उतना उभर कर सामने आया है!
एक विचारधारा विशेष के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर पत्र याचिका में कहा गया है मस्जिद, ईदगाह और दरगाह को कम्युनिटी मीटिंग वाली जगह घोषित करने की मांग की गई है. पत्र याचिका में इस बार तर्क दिया गया है कि जब इस्लाम की उत्पत्ति हुई, कुरान नाजिल हुआ और जब इस्लाम के फैलाव हुआ तो उस वक्त लाउडस्पीकर नहीं थे. अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई के लिए इसे कब सूचीबद्ध करता है. दरअसल, इन दिनों महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में अजान और लाउडस्पीकर को लेकर विवाद चल रहा है. इस वजह से कई जगहों पर तनाव की स्थिति भी पैदा हो गई है
इस मुद्दे से एक बात की तरफ आप सभी का ध्यान दिलाना चाहता हूं , कि आखि़र अज़ान है क्या? और अज़ान हमसे क्या कहती है? पूरी अज़ान का अर्थ क्या है? और क्या है इसका इतिहास।
दरअसल 'अज़ान' अरबी ज़बान का लफ्ज़ है और 'उज़्न' शब्द की जमा (प्लूरल, बहुवचन) है. अज़ान लफ्ज़ का मतलब है 'ऐलान'. यानी किसी चीज के बारे में लोगों को अगाह करना, खबरदार करना है. मतलब: मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह (ईशवर) के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.
अज़ान का शाब्दिक अर्थ होता है ‘पुकारना या घोषणा करना‘। अज़ान का पहला बोल होता हैं: ‘अल्लाहु अकबर इसका अर्थ है कि अल्लाह (ईशवर) बहुत बड़ा/सबसे बड़ा है।
पुरी दुनिया मे अज़ान सूर्योदय के बाद से दिन में 5 बार अज़ान होती है और सूर्य की गणना के हिसाब से हर सैकेंड मे ये अजान पुरे विश्व मे रोटेट होता रहता है और हर सेकंड मे पूरे विश्व मे अज़ान का सिलसिला चलता रहता है आप इसे चाहे तो गूगल मे सर्च करके बेहतर जान सकते है
वैसे भारत के मुसलमानो को आरती से कभी कोई तकलीफ नही हुई तो हनुमान चालीस से क्यो होगा भला? फिर क्यो अज़ान से किसी दूसरे वर्ग को दिक्कत होना चाहिए ? कुछ सत्ता के लोभियो को जो की सौहार्द का वातावरण बिगाड़ना चाहते है उन्हे इससे दिक्कत है क्योकि उनके पास कोई मुद्दा नहीं बचा है समाज को बांटने के अलावा ये उसी एजेंडे का ही हिस्सा है।
भारत देश का साविधान सभी देशवासियों को समान अधिकार देता है देश के किसी भी आम नागरिक की एकाग्रता भंग नही होना चाहिए इसका ध्यान रखा जाना चाहिए और
एक निश्चित मानक तक आवाज़ मस्जिदो मे अज़ान होना चाहिए क्योकि अज़ान मुश्किल से 2 मिनट के लिए होता है फिर भी लौडिस्पीकर लगाकर अज़ान देना मुसलमानो के लिए कोई जरूरी नहीं है क्योकि नमाज़ पढ़ने वाले को अपने इबादत का समय मालूम होता है।
क्योकि पुरातन काल के समय में लौडिस्पीकर का चलन था ही नही
तो इसे प्रतिष्ठा का विषय बनाया नही जाना चाहिए , इसे मुस्लिम समाज को बा खूबी समझना होगा और धैर्य और सहुष्णता का परिचय देते हुए किसी के भी भड़काने मे नही आना चाहिए और इन विध्न संतोषीयो को कोई भी मौका नहीं देना चाहिए क्योकि इस समय कुछ अवसर वादी नेता अपनी धुंधली होती राजनीति को चमकाने के लिए अज़ान को मुद्दा बना रहे है इनमे से एक राज ठाकरे भी है जोकि एक चुका हुआ और भुला दिया गया नेता है जो अपनी खोई हुई पहचान को दोबारा जिंदा करने के लिए मुंबई के शिवाजी पार्क की रैली में अपने थोड़े से समर्थकों को संबोधित करते हुए"मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर अज़ान का मुद्दा गरम करने का प्रयास किया है, और महाराष्ट मे हारी हुई BJP को इससे एक मुद्दा भी मिल गया है ? अब हिंदु और मुसलमानो को समझदारी का परिचय देते हुए भाई चारा बनाए रखना होगा क्योकि कुछ लोग देश मे सांप्रदायिक हिंसा की आड़ मे फिर से सत्ता में काबिज होना चाहते है।
आज के समय जब एक धर्म विशेष के नाम पर नफरत भरी विचार धारा को अपने युवाओ में नफरत परोसने का काम किया जा रहा है उन्हे दंगाई बनाया जा रहा हैं अपराधी बनाया जा रहा है उन नारे लगाने वाले युवाओ के भविष्य को अंधकार के गर्त मे डुबोने का काम किया जा रहा है उन्हे बेरोजगारी के दल दल में डालने पर तुले हुए है राजनेता क्योकि उनके पास सिवाय नफरत फैलाने के कुछ भी नही है ऐसे समय में अब इन दंगाइयों से पीड़ित वर्ग के लोगो को भी गंभीरता से सोचना होगा अपनी विचार धारा को बदलना होगा इन दंगाइयों से पीड़ित वर्ग के उन माता पिताओ को अपने बच्चों को अच्छी शीक्ष (तालीम) और अच्छा भविश्य देकर अच्छा नागरिक बनाने की कोशिश करना चाहिए, उन्हे डॉक्टर, इंजीनियर वकील बना कर समाज में पढ़ा लिखा कर ऊँचा स्थान दिलाना होगा ?
जिन्हे धार्मिक स्थलों के सामने जितने नारे लगाना है लगाने दीजिये नारे , चिल्लाने दीजिए कितना चिल्लायेंगे क्योकि जिस मकसद के लिए ये नारे लगा रहे है इससे इनका कोई भला तो होने वाला नही है क्योकि जिनका भला होगा उनके बच्चे तो राज करेंगे विदेशो और स्कूल मे पढ़ेंगे और ये बेचारे नारे लगाने वाले नौकरी रोजगार के लिए भटकेंगे तब एक समय ऐसा भी आयेगा की ये नारे लगाने वाले ये दंगा कराने वालो के पीछे बर्बाद होने वाले के पास पछताने के सिवाय कुछ नही बचेगा और उन मेहनत करने वालो के आगे नज़र झुकाए हुए खड़े होंगे! जब वे IAS - IPS -डॉक्टर -इंजीनियर बनेंगे चाहे वो किसी भी वर्ग या समाज से हो लेकिन इसके लिए उन्हे कठोर परिश्रम की जरूरत होगी
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