निजी तौर पर पॉर्न वीडियो देखना जुर्म नहीं, केरल HC ने सुनाया फैसला 

पोर्न देखने को लेकर हमारे देश में साफतौर पर कोई कानून नहीं है। हाल ही में केरल हाईकोर्ट में इससे जुड़ा एक मामला पहुंचा, जिस पर खंडपीठ ने हैरान कर देने वाला फैसला सुनाया। साथ ही याचिकाकर्ता को भी बड़ी राहत दी।

निजी तौर पर पॉर्न वीडियो देखना जुर्म नहीं, केरल HC ने सुनाया फैसला 

पोर्न देखने को लेकर हमारे देश में साफतौर पर कोई कानून नहीं है। हाल ही में केरल हाईकोर्ट में इससे जुड़ा एक मामला पहुंचा, जिस पर खंडपीठ ने हैरान कर देने वाला फैसला सुनाया। साथ ही याचिकाकर्ता को भी बड़ी राहत दी।

दरअसल केरल पुलिस ने एक शख्स को सड़क किनारे पोर्न देखते हुए पकड़ा था। उसके ऊपर मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू की गई। हालांकि बाद में उसे जमानत मिल गई। इसके बाद भी वो शख्स नहीं रुका और सीधे हाईकोर्ट पहुंच गया।
शख्स ने कोर्ट को बताया कि उसके ऊपर पुलिस ने जो कार्रवाई की वो गलत है। उसके ऊपर दर्ज केस को पूरी तरह से रद्द किया जाए। उसके वकील ने कई तरह की दलीलें भी दीं।

वहीं सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि 2016 में आरोपी को अलुवा महल इलाके से गिरफ्तार किया गया था। वो सड़क किनारे बैठकर पोर्न देख रहा था, जो अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे में उसे गिरफ्तार कर उसके खिलाफ FIR दर्ज की गई। मामले की सुनवाई जस्टिस पी वी कुन्हिकृष्ण की खंडपीठ ने की। अपने फैसले में उन्होंने कहा कि किसी के निजी वक्त में दूसरों को दिखाए बिना अश्लील तस्वीरें या वीडियो देखना कानून के तहत अपराध नहीं है, क्योंकि ये व्यक्तिगत पसंद का मामला है।

हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि इस तरह के कृत्य को अपराध घोषित करना किसी व्यक्ति की निजता में दखल और उसकी निजी पसंद में हस्तक्षेप होगा। ऐसे में याचिकाकर्ता के ऊपर दर्ज मुकदमे को रद्द किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि पोर्नोग्राफी सदियों से प्रचलन में थी और नए डिजिटल युग ने इसे ज्यादा सुलभ बना दिया है। ये तय किया जाना चाहिए कि क्या दूसरों को दिखाए बिना अपने निजी समय में पोर्न वीडियो देखना अपराध की श्रेणी में आता है? अदालत ये घोषित नहीं कर सकती कि ये अपराध की श्रेणी में आता है, क्योंकि ये उसकी निजी पसंद है।

अगर आरोपी ने किसी अश्लील वीडियो या फोटो को प्रसारित करने या वितरित करने या सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की कोशिश की होती, तो ये कानूनन जुर्म होता। इस मामले में आईपीसी की धारा 292 के तहत कार्रवाई हो सकती थी, लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ।