मध्य प्रदेश के छतरपुर में हुई कार्रवाई संविधान पर बुलडोजर चलाने जैसी है, सभी सेक्युलर राजनीतिक पार्टीयों की जुबानों पर ताले क्यों: एम.डब्ल्यू. अंसारी (आईपीएस)

Article : इस समय हमारे देश में एससी / एसटी, दलित और अकलियतों के हालात बेहद गंभीर और बद से बदतर होते जा रहे हैं। और ये हालात बीजेपी के सत्ता में आने के बाद और भी बदतर हो गए हैं या जानबूझ कर बिगाड़े जा रहे हैं।

मध्य प्रदेश के छतरपुर में हुई कार्रवाई संविधान पर बुलडोजर चलाने जैसी है, सभी सेक्युलर राजनीतिक पार्टीयों की जुबानों पर ताले क्यों: एम.डब्ल्यू. अंसारी (आईपीएस)

Article : इस समय हमारे देश में एससी / एसटी, दलित और अकलियतों के हालात बेहद गंभीर और बद से बदतर होते जा रहे हैं। और ये हालात बीजेपी के सत्ता में आने के बाद और भी बदतर हो गए हैं या जानबूझ कर बिगाड़े जा रहे हैं। देश में हर जगह हिंसा हो रही है। सत्ताधारी दल के नेता कानून और संविधान को ताक पर रखकर खुद मुख्तार बने हुए हैं। ऐसा लगता है कि सत्ता पक्ष कह रहा है कि अब भारत में अदालतों की जरूरत नहीं है, सरकार खुद फैसले लेती है और अपनी ताकत का इस्तेमाल विपक्ष के खिलाफ करती है।

अहमदनगर में सुरेश राने उर्फ महंत रामगिरि महाराज ने पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब की शान में आपत्तिजनक टिप्पणी की एवं उनकी पत्नी के विरुद्ध आपत्तिजनक एवं अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर मुस्लमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है जिसके खिलाफ भारत के अलग-अलग शहरों के साथ-साथ मध्य प्रदेश के छतरपुर में भी मुसलमानों ने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध दर्ज कराने और ज्ञापन देने की कोशिश की, लेकिन पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने में विफल रही, भीड़ उग्र हो गई, पथराव हुआ। इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने छतरपुर में हाजी शहज़ाद के घर पर बुलडोजर चलवा दिया और वहां खड़ी गाड़ियों को भी तहस नहस कर दिया। अगर किसी ने पथराव किया है और कानून अपने हाथ में लिया है तो हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं, लेकिन सजा देने का यह तरीका पूरी तरह से गलत और गैरकानूनी है। सजा दी जाएगी लेकिन कानून के दायरे में रहकर की गई कारवाई भारत के संविधान पर बुलडोजर चलाने जैसी है ।

इतना जुल्म करने के बाद भी जब चैन नहीं आया तो वह वहीं नहीं रुके बल्कि मुसलमानों को सड़कों पर निकाल कर परेड कराई गई और उनसे ये नारा लगवाया गया "पुलिस हमारी बाप है। इस कदम से पुलिस पर से जनता का भरोसा पूरी तरह खत्म हो जाएगा, जिसके भविष्य में गंभीर परिणाम होंगे। यह भी स्पष्ट है कि इस जुलूस में कोई भी पेशावर अपराधी नहीं था, वे लोग थे जो अपने धर्म के प्रति समर्पित थे और पैगंबर के प्यार में सड़कों पर निकले थे, लेकिन उन्हें अपराधियों के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

ये तमाम घटनाएं बहुत दुखद हैं। एक सोच है जो इन घटनाओं को अंजाम दे रही है। इसे वर्तमान सरकार का पूरा समर्थन है क्योंकि पुलिस की उपस्थिति में, हिंदू राष्ट्रवादी मुसलमानों के घरों पर हमला कर रहे हैं और उनके व्यवसायों को नष्ट करने और अपनी नफरत व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

चाहे महिलाओं के साथ बलात्कार हो, माबलिंचींग हो, पुलिस हिरासत में हत्या हो या निर्दोष लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाना हो । कभी किसी आदिवासी युवक के ऊपर पेशाब कर दिया जाता है तो कभी घोड़े पर बैठने पर उन पर जुल्म किया जाता है यानी एससीएसटी, दलित और अल्पसंख्यकों के साथ ये सब हो रहा है और पुलिस प्रशासन और सभी राजनीतिक पार्टियां तमाशबीन बनी हुई हैं।

शायद ही कोई ऐसा सुबा हो जहां एससीएसटी, दलित और अल्पसंख्यकों पर जुल्म न हो रहे हों। मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के अधिकांश हिस्सों में लोगों को पीटा जा रहा है और जेल में डाला जा रहा है। इस देश की सभ्यता सदैव गंगा जमुनी रही है। लेकिन सरकार ने गंगा जमुना सभ्यता के प्रतीक हिजाब के बहाने दमोह में गंगा जमुना स्कूल पर बुलडोजर चला दिया और अब छतरपुर में घरों के साथ-साथ गाड़ियों में भी तोड़फोड़ की गई है, कभी उज्जैन तो कभी बुरहानपुर में निर्दोष लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है. यह केवल एक खास वर्ग के लिए सोची-समझी साजिश के तहत किया जा रहा है।

इन सभी घटनाओं के बाद इतनी क्रूरता और हिंसा के बावजूद दिगर सियासी पार्टी खास कर कांग्रेस आदि राजनीतिक दलों ने इसके खिलाफ चुप्पी साध रखी है। आखिर ये राजनीतिक दल इस क्रूरता के खिलाफ खुलकर आवाज़ कब उठाएंगे? क्या इसे इन पार्टियों का दोगलापन नहीं कहा जाना चाहिए? ये राजनीतिक दल कब रणनीति बनाएंगे? क्या इन दलों को एकजुट होकर हिंसा के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलना चाहिए?
छतरपुर में जो कुछ हुआ, उसके बाद न तो कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने और न ही मध्य प्रदेश के नेताओं और अन्य सभी राजनीतिक धर्मनिरपेक्ष दलों के बड़े नेताओं ने आवाज उठाई। सिर्फ भोपाल से कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद साहब ने आवाज उठाई। उन्होंने हक बात कही और इस चुप्पी पर अपनी पार्टी पर भी सवाल उठाए। पूरे सूबे की शांतिप्रिय जनता ने उनका हौसला बढ़ाया, लेकिन अब सत्ताधारी दल के नेता उनके बयान को गलत तरीके से पेश कर झूठे आरोप लगा रहे हैं। यह याद रखना चाहिए कि अगर कांग्रेस मर गई है, तो कांग्रेस में मोजूद बाज़मीर लोगों को जागना चाहिए और सच्चाई के साथ खड़ा होना चाहिए ।

इसके अलावा, अफसोस की बात तो ये है कि जो मुस्लिम नेता भाजपा की सेवा में लगे हैं या यूं कहें कि भाजपा में रहकर अपनी ही सेवा कर रहे हैं, ये सभी जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने की जहमत नहीं कर रहे हैं, कम से कम इन्हें तो अपनी ताकत का इस्तेमाल कर जुल्म और जालिमों के खिलाफ मोर्चा खोलना ही चाहिए था ।

पूरे भारत में धर्म के प्रति नफरत के आधार पर लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। अभी तक लिंचिंग के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला था कि अब मुस्लिम अल्पसंख्यक इलाकों में मुसलमानों के घरों को इस तरह से नष्ट किया जा रहा है। हालांकि कुछ दिन पहले अन्य जाति समुदाय के लोगों ने भी विरोध प्रदर्शन किया था, पथराव भी हुआ था, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। भारत बंद के आह्वान पर एससी / एसटी ने भी अपनी ताकत दिखाई लेकिन वहां ऐसी कोई हरकत देखने को नहीं मिली।

इतना ही नहीं, देश के कई शहरों और जगहों पर सत्ताधारी पार्टी के कारकुन खासकर आरएसएस, शिव सेना, विशु हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि के कार्यकर्ता भी भारत माता की जय के नारे लगाते हैं और पुलिस पर हमला करते हैं उन पर कार्रवाई नही की जाती। हालाँकि भारत का संविधान लोगों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की बात करता है, यह लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह बीजीपी सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है और कोई बोलने वाला नहीं है। यहां तक कि न्यायपालिका भी चुप है जिसे ऐसे मामलों पर खुद संज्ञान लेना चाहिए ।

अभी भी समय है एससी-एसटी, दलित और अल्पसंख्यकों को अपनी राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगानी होगी। अंत में हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि यदि सरकार ने न्याय के साथ काम किया होता और पैगंबर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी करने वाले के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की होती, तो शायद संविधान का उल्लंघन करने की नौबत नहीं आती। ना ही इतना जुल्म हुआ होता। ये बुलडोजर मजलूमों के घरों पर नहीं बल्कि भारत के संविधान पर चला है। संविधान को बचाने का झूठा नारा देने वाले आज कहां हैं जब संविधान का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है? यही वह समय है जब सभी को पता चल जाएगा कि कौन बाबा साहेब के संविधान में विश्वास करता है और कौन सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए संविधान को बचाने का नारा लगा रहा है और लोगों को बेवकूफ बना रहा है।