प्लेन में बम भरकर टारगेट से टकराकर तबाही फैलाते थे जापानी कामिकेज पॉयलट, अब भारत ने बनाए ऐसे ही ड्रोन

Kamikaze Drone : जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था तब जापान ने ऐसा आत्मघाती विमानदस्ता कामिकेज बनाया था, जो बारूदों से लदे होते थे, जापानी पायलट इन विमानों को सीधे टारगेट से टकराते थे.

प्लेन में बम भरकर टारगेट से टकराकर तबाही फैलाते थे जापानी कामिकेज पॉयलट, अब भारत ने बनाए ऐसे ही ड्रोन

Kamikaze Drone : जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था तब जापान ने ऐसा आत्मघाती विमानदस्ता कामिकेज बनाया था, जो बारूदों से लदे होते थे, जापानी पायलट इन विमानों को सीधे टारगेट से टकराते थे. भारत की अनुसंधान संस्थान नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज (एनएएल) ने एक आत्मविनाशकारी ड्रोन बनाई है, इस देशी ड्रोन को नाम दिया गया है ‘कामिकेज़’. ये स्वदेशी इंजन से बने हैं और 1,000 किमी की रेंज तक जाकर मार करते हैं, यानि भारत से सीधे पाकिस्तान और चीन में अंदर घुसकर तबाही मचा सकते हैं.

कामिकेज़ का मतलब जापान में दूसरी विश्वयुद्ध में होता था आत्मघाती विमान दस्ता, वैसे जापान में इसका सही अर्थ है ‘दिव्य हवा’ या ‘आत्मा की हवा’. कामिकेज जापानी विशेष हमला इकाइयों का एक हिस्सा थे,जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र देशों की नौसेना के जहाजों के खिलाफ आत्मघाती हमले किए, जिसका उद्देश्य पारंपरिक हवाई हमलों की तुलना में युद्धपोतों को अधिक प्रभावी ढंग से नष्ट करना था. युद्ध के दौरान लगभग जापान के 3,800 कामिकेज़ पायलटों की मृत्यु हो गई थी.

भारत ने कैसे कामिकेज ड्रोन बनाए

भारत ने जिन कामिकेज ड्रोन को विकसित किया है, वो मानव रहित हैं. कम लागत के हैं. इन्हें दूर से कंट्रोल किया जा सकता है. ये एक निश्चित ऊंचाई पर उड़ते हैं. ये 100-120 किलो वजन ले जा सकते हैं. 30-40 किलो विस्फोटक ले जा सकते हैं. जैसे ही किसी तय टारगेट से टकराते हैं, इनमें विस्फोट हो जाता है और तब ये तबाही ले आते हैं. इसी वजह से भारत की जिस नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज (National Aerospace Laboratories) ने इसे कोमिकेज नाम दिया.

एनएएल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद का घटक है, जिसे आरएंडडी लैब के तहत 1959 में बनाया गया था. अब आइए जापानी कामिकेज विमानों और पायलटों की बात करते हैं.

अमेरिकी भयभीत रहते थे जापानी कामिकेज पायलटों से

कामिकेज़ विमान पायलट इतने खतरनाक आत्मघाती दस्ता थे कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मित्र सेना के विमान, महत्वपूर्ण सामरिक जगहें और जहाज उनसे भयभीत रहते थे. क्योंकि ये पायलट विस्फोटकों से लदे अपने विमानों को दुश्मन के जहाजों से टकराने का प्रयास करते थे, इन्हें प्लेन मिसाइल भी कहा जाता था.

तबाही फैला देते थे कामिकेज दस्ते

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के करीब 19फीसदी कामिकेज़ हमले सफल रहे. जापानियों ने बड़ी संख्या में मित्र देशों के जहाजों को नुकसान पहुँचाने या डुबाने के लिए ऐसे काम किए. कामिकेज़ पारंपरिक हमलों की तुलना में अधिक सटीक था. ये दुश्मन को अधिक नुकसान पहुँचाता था. बाद में दुनियाभर में आत्मघाती मानव बम की प्रेरणा आतंकी समूहों और लिट्टे जैसे संगठनों से यहीं से ली.

क्यों जापान ने बनाए कामिकेज दस्ते

हालांकि जापान के कामिकेज दस्तों को बनाने की भी खास वजह थी. दूसरे विश्व युद्ध के आगे बढ़ने के साथ जापानी जब कई महत्वपूर्ण युद्ध हार चुके थे, कई बेहतरीन पायलट मारे जा चुके थे, विमान पुराने हो रहे थे, वे हवा पर नियंत्रण खो चुके थे. तब जापान के पास इतना समय नहीं था कि वह अपने लड़ाकू विमान पायलटों को बेहतर तरीके से ट्रेंड करे. उसकी औद्योगिक क्षमता भी कम हो चुकी थी. तब उसने कामिकेज़ रणनीति का उपयोग शुरू किया.

क्या है जापान की समुराई परंपरा

हार, कब्जा और शर्म की जगह मौत की परंपरा जापानी सैन्य संस्कृति में गहराई से समाई हुई थी. समुराई जीवन और बुशिडो कोड ये कहता है कि हार के बेहतर है कि मौत को गले लगाएं. ऐसी मृत्यु को वफादारी और सम्मान माना जाता था. केवल कामिकेज़ ही नहीं जापान ने आत्मघाती गोताखोरों का भी इस्तेमाल किया. वैसे इस आत्मघाती विमान हमलों के लिए कामिकेज शब्द का प्रयोग जापानी प्रेस ने किया लेकिन फिर ये शब्द पॉपुलर हो गया.

कैसे शुरू हुआ ये

कहा जाता है कि जापान पहला कामिकेज़ मिशन 13 सितंबर 1944 को हुआ. नेग्रोस द्वीप पर सेना के 31वें फाइटर स्क्वाड्रन के पायलटों के एक समूह ने अगली सुबह आत्मघाती हमला करने का फैसला किया. पहले लेफ्टिनेंट ताकेशी कोसाई और एक सार्जेंट को चुना गया. दो लड़ाकू विमानों में दो 100 किलोग्राम (220 पाउंड) के बम लगाए गए. पायलटों ने भोर से पहले उड़ान भरी ताकि वे वाहकों से टकरा सकें. ये आत्मघाती विमान और पायलट कभी वापस नहीं लौटे.

अमेरिका और यूक्रेन भी ऐसे ड्रोन इस्तेमाल करते हैं

यूक्रेन ने रूस में अंदर घुसकर ऐसे ही ड्रोन के जरिए तबाही मचाई है. रूस भी इनका इस्तेमाल कर रहा है. ये इतने फुर्तीले हैं कि कई वायु रक्षा प्रणालियों से बच सकते हैं. ईरान भी इस तरह के ड्रोन बनाने में एक्सपर्ट माना जाता है.(एजेंसी)